नवगीत
सूर्य उग रहा आशाओं का
आशंका बादल घेरे हैं
जय नरेंद्र की
बोल रहा देवेन्द्र हुलस कर
महाराष्ट्र भी
राष्ट्र वंदना करे पुलक कर
रचे महाभारत
जब-जब तब भारत बदले
शतदल कमल
खिला है, हेरे विश्व विहँस कर
करे भागवत
मोहन उन्नति के फेरे हैं
सीमा पार
पड़ोसी बैठे घात लगाये
घर में छिपा विभीषण
अरि को गले लगाये
धन लिप्सा
सेठों-नेताओं की घातक है
भरे विदेशी बैंक
संधियाँ कर मुस्काये
आम आदमी को
अभाव पल-पल टेरे है
चपरासी-बाबू पर
खर्च घटाओ स्वागत
जनप्रतिनिधि को तनिक
सिखाएं कभी किफायत
अफसर अपव्यय घटा
सकें, मँहगाई घटेगी
सस्ता न्याय-इलाज
बनायें नयी रवायत
जनता को कानून
व्यर्थ ही क्यों पेरे हैं?
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संजीवनी अस्पताल रायपुर
३१. १०.२०१४
संजीवनी अस्पताल रायपुर
३१. १०.२०१४
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