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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

navgeet

चित्र पर रचना
नवगीत:


ओ ममतामयी!
कहाँ गयीं तुम?
.
नयनों से वात्सल्य लुटातीं
अधर बीच मोती चमकातीं
माथे रहा दमकता सूरज-
भारत माँ तुम पर बलि जातीं
ओ समतामयी!
कहाँ गयीं तुम?
.
शक्ति-शारदा-रमा त्रयी थीं
भारत माता की अनुकृति थीं
लालबहादुर की अर्धांगिनी
सत्य कहूँ तुम परा-प्रकृति थीं
ओ क्षमतामयी!
कहाँ गयीं तुम?
.
ओज तेज सौंदर्य स्वरूपा
सात्विकता की मूर्ति अनूपा
आस जगाने, विजय दिलाने
प्रगटीं देवांगना अरूपा
ओ ममतामयी!
कहाँ गयीं तुम?
.


  

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