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शनिवार, 31 मई 2014

kundali milan men gan vichar: sanjiv

लेख: 
कुंडली मिलान में गण-विचार
संजीव 
*








वैवाहिक संबंध की चर्चा होने पर लड़का-लड़की की कुंडली मिलान की परंपरा भारत में है. कुंडली में वर्ण का १, वश्य के २, तारा के ३, योनि के ४, गृह मैटरर के ५, गण के ६, भकूट के ७ तथा नाड़ी के ८ कुल ३६ गुण होते हैं.जितने अधिक गुण मिलें विवाह उतना अधिक सुखद माना जाता है. इसके अतिरिक्त मंगल दोष का भी  विचार किया जाता है. 

कुंडली मिलान में 'गण' के ६ अंक होते हैं. गण से आशय मन:स्थिति या मिजाज (टेम्परामेन्ट) के तालमेल से हैं. गण अनुकूल हो तो दोनों में उत्तम सामंजस्य और समन्वय उत्तम होने तथा गण न मिले तो शेष सब अनुकूल होने पर भी अकारण वैचारिक टकराव और मानसिक क्लेश होने की आशंका की जाती है. दैनंदिन जीवन में छोटी-छोटी बातों में हर समय एक-दूसरे की सहमति लेना या एक-दूसरे से सहमत होना संभव नहीं होता,  दूसरे को सहजता से न ले सके और टकराव हो तो पूरे परिवार की मानसिक शांति नष्ट होती है। गण भावी पति-पत्नी के वैचारिक साम्य और सहिष्णुता को इंगित करते हैं 

ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थ कल्पद्रुम के अनुसार निम्न २ स्थितियों में गण दोष को महत्त्वहीन कहा गया है:

१. 'रक्षो गणः पुमान स्याचेत्कान्या भवन्ति मानवी । केपिछान्ति तदोद्वाहम व्यस्तम कोपोह नेछति ।।' 

अर्थात जब जातक का कृतिका, रोहिणी, स्वाति, मघा, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढा नक्षत्रों में जन्म हुआ हो।

        २. 'कृतिका रोहिणी स्वामी मघा चोत्त्राफल्गुनी । पूर्वाषाढेत्तराषाढे न क्वचिद गुण दोषः ।।'

अर्थात जब वर-कन्या के राशि स्वामियों अथवा नवांश के स्वामियों में मैत्री हो।

      गण को ३ वर्गों 1-देवगण, 2-नर गण, 3-राक्षस गण में बाँटा गया है। गण मिलान ३ स्थितियाँ हो सकती हैं:

1. वर-कन्या दोनों समान गण के हों तो सामंजस्य व समन्वय उत्तम होता है. 

2. वर-कन्या देव-नर हों तो सामंजस्य संतोषप्रद होता है ।

३. वर-कन्या देव-राक्षस हो तो सामंजस्य न्यून होने के कारण पारस्परिक टकराव होता है ।

शारंगीय के अनुसार; वर राक्षस गण का और कन्या मनुष्य गण की हो तो विवाह उचित होगा। इसके विपरीत वर मनुष्य गण का एवं कन्या राक्षस गण की हो तो विवाह उचित नहीं अर्थात सामंजस्य नहीं होगा। 

सर्व विदित है कि देव सद्गुणी किन्तु विलासी, नर या मानव परिश्रमी तथा संयमी एवं असुर या राक्षस दुर्गुणी, क्रोधी तथा अपनी इच्छा अन्यों पर थोपनेवाले होते हैं।  

भारत में सामान्यतः पुरुषप्रधान परिवार हैं अर्थात पत्नी सामान्यतः पति की अनुगामिनी होती है। युवा अपनी पसंद से विवाह करें या अभिभावक तय करें दोनों स्थितियों में वर-वधु के जीवन के सभी पहलू एक दूसरे को विदित नहीं हो पाते गण मिलान अज्ञात पहलुओं का संकेत कर सकता है गण को कब-कितना महत्त्व देना है यह उक्त दोनों तथ्यों तथा वर-वधु के स्वभाव, गुणों, शैक्षिक-सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में विचारकर तय करना चाहिए। 

   
***


शुक्रवार, 30 मई 2014

chaupaal charcha: sanjiv


चौपाल-चर्चा: 

भारत में स्वान में महिलाओं के मायके जाने की रीत है. क्यों न गृह स्वामिनी के जिला बदर के स्थान पर दामाद के ससुराल जाने की रीत हो. इसके अनेक फायदे हो सकते हैं. आप क्या सोचते हैं?

१. बीबी की तानाशाही से त्रस्त मानुष सेवक के स्थान पर अतिथि होने का सुख पा सकेगा याने नवाज़ शरीफ भारत में। 

२. आधी घरवाली और सरहज के प्रभाव से बचने के लिये बेचारे पत्नीपीड़ित पति को घर पर भी कुछ संरक्षण मिलेगा याने बीजेपी के सहयोगी दलों को भी मंत्री पद। 

३. निठल्ले और निखट्टू की विशेषणों से नवाज़े गये साथी की वास्तविक कीमत पता चल सकेगी याने जसोदा बेन प्रधान मंत्री निवास में।

४. खरीददारी के बाद थैले खुद उठाकर लाने से स्वस्थ्य होगी तो डॉक्टर और दवाई का खर्च आधा होने से वैसी ही ख़ुशी मिलेगी जैसी आडवाणी जो मोदी द्वारा चरण स्पर्श से होती है। 

५. पति के न लौटने तक पली आशंका लौटते ही समाप्त हो जाएगी तो दांपत्य में माधुर्य बढ़ेगा याने सरकार और संघ में तालमेल। 

६. जीजू की जेब काटकर साली तो खुश होगी ही, जेब कटाकर जीजू प्रसन्न नज़र आयेंगे अर्थात लूटनेवाले और लूटनेवाले दोनों खुश, और क्या चाहिए? इससे अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव बढ़ेगा ही याने घर-घर सुषमा स्वराज्य. 

७. मौज कर लौटे पति की परेड कराने के लिए पत्नी को योजना बनाने का मौका याने  संसाधन मंत्रालय मिल सकेगा. कौन महिला स्मृति ईरानी सा महत्त्व नहीं चाहेगी? 

कहिए, क्या राय है? 

गुरुवार, 29 मई 2014

haiku salila: sanjiv

हाइकु सलिला: 

संजीव 
*
कमल खिला
संसद मंदिर में
पंजे को गिला   
*
हट गयी है 
संसद से कैक्टस
तुलसी लगी
नरेंद्र नाम 
गूँजा था, गूँज रहा 
अमरीका में 
*
मिटा कहानी 
माँ और बेटे लिखें 
नयी कहानी 
 * 
नहीं हैं साथ 
वर्षों से पति-पत्नी 
फिर भी साथ 
*

charcha: rashtreey sarkar

चर्चा :

क्या चुनाव में दलीय स्पर्धा से उपजी कड़वाहट और नेताओं में दलीय हित को राष्ट्रीय  हित पर वरीयता देने को देखते हुए राष्ट्रीय सरकार भविष्य में अधिक उपयुक्त होगी?

संविधान नागरिक को अपना प्रतिनिधि चुनने देता है. दलीय उम्मीदवार को दल से इतनी सहायता मिलती है की आम आदमी उम्मीदवार बनने का सोच भी नहीं सकता। 
स्वतंत्रता के बाद गाँधी ने कांग्रेस भंग करने की सलाह दी थी जो कोंग्रेसियों ने नहीं मानी, अटल जी ने प्रधान मंत्री रहते हुए राष्ट्रीय सरकार की बात थी किन्तु उनके पास स्पष्ट बहुमत नहीं था और सहयोगी दलों को उनकी बात स्वीकार न हुई. क्यों न इस बिंदु के विविध पहलुओं पर चर्चा हो. 
   
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

chhand salila: rola chhand -sanjiv



छंद सलिला:   ​​​

रोला  छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, चार पद, प्रति चरण दो पद - मात्रा २४ मात्रा, यति ग्यारह तेरह, पदांत गुरु (यगण, मगण, रगण, सगण), विषम पद सम तुकांत, 


लक्षण छंद:

आठ चरण पद चार, ग्यारह-तेरह यति रखें  
आदि जगण तज यार, विषम-अंत गुरु-लघु दिखें  
गुरु-गुरु से सम अंत, जाँचकर रचिए रोला
अद्भुत रस भण्डार, मजा दे ज्यों हिंडोला 

उदाहरण: 

१. सब होंगे संपन्न, रात दिन हँसें-हँसायें 
    कहीं न रहें विपन्न, कीर्ति सुख सब जन पायें 
    भारत बने महान, श्रमी हों सब नर-नारी 
    सद्गुण की हों खान, बनायें बिगड़ी सारी

२. जब बनती है मीत, मोहती तभी सफलता 
    करिये जमकर प्रीत, न लेकिन भुला विफलता 
    पद-मद से रह दूर, जमाये निज जड़ रखिए
    अगर बन गए सूर, विफलता का फल चखिए  
    
३.कोटि-कोटि विद्वान, कहें मानव किंचित डर 
   तुझे बना लें दास, अगर हों हावी तुझपर
   जीव श्रेष्ठ निर्जीव, हेय- सच है यह अंतर 
   'सलिल' मानवी भूल, न हों घातक कम्प्यूटर

टीप: 
रोल के चरणान्त / पदांत में गुरु के स्थान पर दो लघु मात्राएँ ली जा सकती हैं. 
सम चरणान्त या पदांत सैम तुकान्ती हों तो लालित्य बढ़ता है. 
रचना क्रम विषम पद: ४+४+३ या ३+३+२+३ / सम पद ३+२+४+४ या ३+२+३+३+२  
कुछ रोलाकारों ने रोला में २४ मात्री पद और अनियमित गति रखी है.
नविन चतुर्वेदी के अनुसार रोला की बहरें निम्न हैं:
अपना तो है काम छंद  की करना 
फइलातुन फइलात फाइलातुन फइलातुन 
२२२ २२१ = ११ / २१२२ २२२ = १३ 
भाषा का सौंदर्य, सदा सर चढ़कर बोले
फाइलुन मफऊलु / फ़ईलुन फइलुन फइलुन
२२२ २२१ = ११ / १२२ २२ २२ = १३
                       
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

रविवार, 25 मई 2014

haiku charcha: 1 sanjiv

हाइकु चर्चा : १. 

संजीव 
*
हाइकु (Haiku 俳句 high-koo) ऐसी लघु कवितायेँ हैं जो एक अनुभूति या छवि को व्यक्त करने के लिए संवेदी भाषा प्रयोग करती है. हाइकु बहुधा प्रकृति के तत्व, सौंदर्य के पल या मार्मिक अनुभव से प्रेरित होते हैं. मूलतः जापानी कवियों द्वारा विकसित हाइकु काव्यविधा अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ द्वारा ग्रहण की गयी. 
  • पाश्चात्य काव्य से भिन्न हाइकु में सामान्यतः तुकसाम्य, छंद बद्धता या काफ़िया नहीं होता। 
  • हाइकु को असमाप्त काव्य  कहा जाता है चूँकि हर हाइकु में पाठक / श्रोता के मनोभावों के अनुसार पूर्ण किये जाने की अपेक्षा होती  है. 
  • हाइकु का उद्भव 'रेंगा नहीं हाइकाइ haikai no renga' (सहयोगी काव्य समूह जिसमें शताधिक छंद होते हैं) से हुआ है. 'रेंगा' समूह का प्रारंभिक छंद 'होक्कु'  मौसम तथा अंतिम शब्द का संकेत करता है. हाइकु काव्य-शिल्प इस परंपरा की निरंतरता  बनाये रखता है. 
  • समकालिक हाइकुकार कम से कम शब्दों से लघु काव्य रचनाएँ करते हैं. ३-५-३ सिलेबल के लघु हाइकु खूब लोकप्रिय हैं. 
हाइकु का वैशिष्ट्य 

१. ध्वन्यात्मक संरचना:

Write a Haiku Poem Step 2.jpgपारम्परिक जापानी हाइकु १७ ध्वनियों का समुच्चय है जो ५-७-५ ध्वनियों की ३ पदावलियों में विभक्त होते हैं. अंग्रेजी के कवि इन्हें सिलेबल (लघुतम उच्चरित ध्वनि) कहते हैं. समय के साथ विकसित हाइकु काव्य के अधिकांश हाइकुकार अब इस संरचना का अनुसरण नहीं करते। जापानी या अंग्रेजी के आधुनिक हाइकु न्यूनतम एक से लेकर सत्रह से अधिक ध्वनियों तक के होते हैं. अंग्रेजी सिलेबल लम्बाई में बहुत परिवर्तनशील होते है जबकि जापानी सिलेबल एकरूपेण लघु होते हैं. इसलिए 'हाइकु चंद ध्वनियों का उपयोग कर एक छवि निखारना है' की पारम्परिक धारणा से हटकर १७ सिलेबल का अंग्रेजी हाइकु १७ सिलेबल के जापानी हाइकु की तुलना में बहुत लंबा होता है. ५-७-५ सिलेबल का बंधन बच्चों को विद्यालयों में पढाये जाने के बावजूद अंग्रेजी हाइकू लेखन में प्रभावशील नहीं है. हाइकु लेखन में सिलेबल निर्धारण के लिये जापानी अवधारणा "हाइकु एक श्वास में अभिव्यक्त कर सके" उपयुक्त है. अंग्रेजी में सामान्यतः  इसका आशय १० से १४ सिलेबल लंबी पद्य रचना से है. अमेरिकन उपन्यासकार जैक कैरोक का एक हाइकु देखें:

Snow in my shoe         मेरे जूते में बर्फ 
Abandoned                  परित्यक्त 
Sparrow's nest             गौरैया-नीड़ 


२. वैचारिक सन्निकटता:

हाइकु में दो विचार सन्निकट हों: जापानी शब्द 'किरु' अर्थात 'काटना' का आशय है कि हाइकु में दो सन्निकट विचार हों जो व्याकरण की दृष्टि से स्वतंत्र तथा कल्पना प्रवणता की दृष्टि से भिन्न हों. सामान्यतः जापानी हाइकु 'किरेजी' (विभाजक शब्द) द्वारा विभक्त दो सन्निकट विचारों को समाहित कर एक सीधी पंक्ति में रचे जाते हैं. किरेजी एक ध्वनि पदावली (वाक्यांश) के अंत में आती है. अंग्रेजी में किरेजी की अभिव्यक्ति - से की जाती है. बाशो के निम्न हाइकु में दो भिन्न विचारों की संलिप्तता देखें: 

how cool the feeling of a wall against the feet — siesta

कितनी शीतल दीवार की अनुभूति पैर के विरुद्ध 

आम तौर पर अंग्रेजी हाइकु ३ पंक्तियों में रचे जाते हैं. २ सन्निकट विचार (जिनके लिये २ पंक्तियाँ ही आवश्यक हैं) पंक्ति-भंग, विराम चिन्ह अथवा रिक्त स्थान द्वारा विभक्त किये जाते हैं. अमेरिकन कवि ली गर्गा का एक हाइकु देखें- 

fresh scent-                     ताज़ा सुगंध 
the lebrador's muzzle       लेब्राडोर की थूथन 
deepar into snow             गहरे बर्फ में.

सारतः दोनों स्थितियों  में, विचार- हाइकू का दो भागों में विषयांतर कर अन्तर्निहित तुलना द्वारा रचना के आशय को ऊँचाई देता है. इस द्विभागी संरचना की प्रभावी निर्मिति से दो भागों के अंतर्संबंध तथा उनके मध्य की दूरी का परिहार हाइकु लेखन का कठिनतम भाग है.

३. विषय चयन और मार्मिकता

पारम्परिक हाइकु मनुष्य के परिवेश, पर्यावरण और प्रकृति पर केंद्रित होता है. हाइकु को ध्यान की एक विधि के रूप में देखें जो स्वानुभूतिमूलक व्यक्तिनिष्ठ विश्लेषण या निर्णय आरोपित किये बिना वास्तविक वस्तुपरक छवि को सम्प्रेषित करती है. जब आप कुछ  ऐसा देखें या अनुभव करे जो आपको अन्यों को बताने के लिए प्रेरित करे तो उसे 'ध्यान से देखें', यह अनुभूति हाइकु हेतु उपयुक्त हो सकती है.  जापानी कवि क्षणभंगुर प्राकृतिक छवियाँ यथा मेंढक का तालाब में कूदना, पत्ती पर जल वृष्टि होना, हवा से फूल का झुकना आदि को ग्रहण  व सम्प्रेषित करने के लिये हाइकु का उपयोग करते हैं. कई कवि 'गिंकगो वाक' (नयी प्रेरणा की तलाश में टहलना) करते हैं. आधुनिक हाइकु प्रकृति से पर हटकर शहरी वातावरण, भावनाओं, अनुभूतियों, संबंधों, उद्वेगों, आक्रोश, विरोध, आकांक्षा, हास्य आदि को हाइकू की विषयवस्तु बना रहे हैं. 

४. मौसमी संदर्भ

जापान में  'किगो' (मौसमी बदलाव, ऋतु परिवर्तन आदि) हाइकु का अनिवार्य तत्व है. मौसमी संदर्भ स्पष्ट या प्रत्यक्ष (सावन, फागुन आदि) अथवा सांकेतिक या परोक्ष (ऋतु विशेषमें खिलनेवाले फूल, मिलनेवाले फल, आनेवाले पर्व आदि) हो सकते हैं. फुकुडा चियो नी रचित हाइकु देखें:

morning glory!                               भोर की महिमा
the well bucket-entangled,            कुआं - बाल्टी गठबंधन
I ask for water                                मैंने पानी माँगा 

५. विषयांतर: 

हाइकु में दो सन्निकट विचारों की अनिवार्यता को देखते हुए चयनित विषय के परिदृश्य को इस प्रकार बदलें कि रचना में २ भाग हो सकें. जैसे लकड़ी के लट्ठे पर रेंगती दीमक पर केंद्रित होते समय उस छवि को पूरे जंगल या दीमकों के निवास के साथ जोड़ें। सन्निकटता तथा संलिप्तता हाइकु को सपाट वर्णन के स्थान पर गहराई तथा लाक्षणिकता प्रदान करती हैं. रिचर्ड राइट का यह हाइकु देखें: 

A broken signboard banging       टूटा साइनबोर्ड तड़का
In the April wind.                          अप्रैल की हवाओं में
Whitecaps on the bay.                 खाड़ी में झागदार लहरें 

६. संवेदी भाषा-सूक्ष्म विवरण: 

हाइकु गहन निरीक्षणजनित सूक्ष्म विवरणों से निर्मित और संपन्न होता है. हाइकुकार किसी घटना को साक्षीभाव (तटस्थता) से देखता है और अपनी आत्मानुभूति शब्दों में ढालकर अन्यों तक पहुँचाता है. हाइकु का विषय चयन करने के पश्चात उन विवरणों का विचार करें जिन्हें आप हाइकु में देना चाहते हैं. मस्तिष्क को विषयवस्तु पर केंद्रित कर विशिष्टताओं से जुड़े प्रश्नों का अन्वेषण करें। जैसे: अपने विषय के सम्बन्ध क्या देखा? कौन से रंग, संरचना, अंतर्विरोध, गति, दिशा, प्रवाह, मात्रा, परिमाण, गंध आदि तथा अपनी अनुभूति को आप कैसे सही-सही अभिव्यक्त कर सकते हैं?

७. वर्णनात्मक नहीं दृश्यात्मक  

हाइकु-लेखन वस्तुनिष्ठ अनुभव के पलों का अभिव्यक्तिकरण है न की उन घटनाओं का आत्मपरक या व्यक्तिपरक विश्लेषण या व्याख्या।  हाइकू लेखन के माध्यम से पाठक/श्रोता को घटित का वास्तविक साक्षात कराना अभिप्रेत है न कि यह बताना कि घटना से आपके मन में  क्या भावनाएं उत्पन्न हुईं। घटना की छवि से पाठक / श्रोता को उसकी अपनी भावनाएँ अनुभव करने दें. अतिसूक्ष्म, न्यूनोक्ति (घटित को कम कर कहना) छवि का प्रयोग करें। यथा: ग्रीष्म पर केंद्रित होने के स्थान पर सूर्य के झुकाव या वायु के भारीपन पर प्रकाश डालें। घिसे-पिटे शब्दों या पंक्तियों जैसे अँधेरी तूफानी रात आदि का उपयोग न कर पाठक / श्रोता को उसकी अपनी पर्यवेक्षण  उपयोग करने दें. वर्ण्य छवि के माध्यम से मौलिक, अन्वेषणात्मक भाषा / शंब्दों की तलाश कर अपना आशय सम्प्रेषित करें। इसका  आशय यह नहीं है कि शब्दकोष लेकर अप्रचलित शब्द खोजकर प्रयोग करें अपितु अपने जो देखा और जो आप दिखाना चाहते हैं उसे अपनी वास्तविक भाषा में स्वाभाविकता से व्यक्त करें।


८. प्रेरित हों: महान हाइकुकारों की परंपरा प्रेरणा हेतु बाह्य भ्रमण करना है. अपने चतुर्दिक पदयात्रा करें और परिवेश से समन्वय स्थापित करें ताकि परिवेश अपनी सीमा से बाहर आकर आपसे बात करता प्रतीत हो । 

आज करे सो अब: कागज़-कलम अपने साथ हमेशा रखें ताकि पंक्तियाँ जैसे ही उतरें, लिख सकें। आप कभी पूर्वानुमान नहीं कर सकते कि कब जलधारा में पाषाण का कोई दृश्य, सुरंग पथ पर फुदकता चूहा या सुदूर पहाड़ी पर बादलों की टोपी आपको हाइकू लिखने के लिये प्रेरित कर देगी।               
पढ़िए-बढ़िए: अन्य हाइकुकारों के हाइकू पढ़िए। हाइकु के रूप विधान  की स्वाभाविकता, सरलता, सहजता तथा सौंदर्य ने  विश्व की अनेक भाषाओँ में सहस्त्रोंको लिखने की प्रेरणा दी हैअन्यों के हाइकू पढ़ने से आपके अंदर छिपी प्रतिभा स्फुरित तथा गतिशील हो सकती है

९. अभ्यास: किसी भी अन्य कला की तरह ही हाइकू लेखन कला भी आते-आते ही  आती है. सर्वकालिक महानतम हाइकुकार बाशो के अनुसार हर हाइकु को हजारों बार जीभ पर दोहराएं, हर हाइकू को कागज लिखें, लिखें और फिर-फिर लिखें जब तक कि उसका निहितार्थ स्पष्ट न हो जाए. स्मरण रहे कि आपको ५-७-५ सिलेबल के बंधन में कैद नहीं होना है. वास्तविक साहित्यिक हाइकु में 'किगो'  द्विभागी सन्निकट संरचना और प्राथमिक तौर पर संवादी छवि होती ही है.  

१०. संवाद: हाइकू के गंभीर और सच्चे अध्येता हेतु  विश्व की विविध भाषाओँ के हाइकुकारों के विविध मंचों, समूहों, संस्थाओं और पत्रिकाओं से जुड़ना आवश्यक है ताकि वे अधुनातन हाइकु शिल्प और शैली के विषय में अद्यतन जानकारी पा सकें।    



मंगलवार, 20 मई 2014

chhand salila: roopmala chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

रूपमाला  छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति चौदह-दस, पदांत गुरु-लघु (जगण) 


लक्षण छंद:
  रूपमाला रत्न चौदह, दस दिशा सम ख्यात
  कला गुरु-लघु रख चरण के, अंत उग प्रभात
  नाग पिंगल को नमनकर, छंद रचिए आप्त 
  नव रसों का पान करिए, ख़ुशी हो मन-व्याप्त 
 
उदाहरण: 
१. देश ही सर्वोच्च है- दें / देश-हित में प्राण 
    जो- उन्हीं के योग से है / देश यह संप्राण
    करें श्रद्धा-सुमन अर्पित / यादकर बलिदान
    पीढ़ियों तक वीरता का / 'सलिल'होगा गान

२. वीर राणा अश्व पर थे, हाथ में तलवार 
    मुगल सैनिक घेर करते, अथक घातक वार
    दिया राणा ने कई को, मौत-घाट उतार 

    पा न पाये हाय! फिर भी, दुश्मनों से पार 
    ऐंड़ चेटक को लगायी, अश्व में थी आग 
    प्राण-प्राण से उड़ हवा में, चला शर सम भाग 
    पैर में था घाव फिर भी, गिरा जाकर दूर 
    प्राण त्यागे, प्राण-रक्षा की- रुदन भरपूर 
    किया राणा ने, कहा: 'हे अश्व! तुम हो धन्य 
    अमर होगा नाम तुम हो तात! सत्य अनन्य। 
                  
                              *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

सोमवार, 19 मई 2014

chintan: are women slave & anti islamic?



सोचिए, क्या औरतें गैर इस्लामिक और मर्दों की गुलाम मात्र हैं?

इस्लामाबाद। द कौंसिल ऑफ़ इस्लामिक आइडिओलॉजी The Council of Islamic Ideology (CII) की १९२ वीं बैठक के निर्णय अनुसार ' औरतों का अस्तित्व शरीया तथा अल्लाह की इच्छा के विपरीत है. कौंसिल के चेयरमैन मौलाना मुहम्मद खान शीरानी ने कहा कि औरतों का होना प्रकृति के नियमों का उल्लंघन है तथा औरतों से इस्लाम और शरीया की रक्षा लिए औरतों को निजी अस्तित्व न रखने के लिए बाध्य किया जाए. मुस्लिम औरतों की शादी के लिए न्यूनतम आयु निर्धारण को इस्लामविरोधी घोषित के २ दिन बाद यह घोषणा की गयी. शीरानी ने औरतों को इस्लाम विरोधी घाषित करते हुए  कहा कि औरतें दो प्रकार की हराम  (निषिद्ध) तथा मकरूह (नापसंद) होती हैं. कोई भी औरत जो अपनी इच्छा अनुसार कार्य करती है हराम तथा इस्लाम के विरुद्ध षड्यंत्रकर्त्री है.  केवल पूरी तरह आज्ञापालक औरत खुद को मकरूह के स्तर तक उठा सकती है, यही इस्लाम की उदारता तथा मुस्लिम पुरुष की कोशिश है. कौंसिल सदस्यों ने औरतों से जुड़े कर ऐतिहासिक सन्दर्भों विचार के बाद पाया की हर औरत फ़ित्ना का  इस्लाम की दुश्मन है. उन्होंने यह निर्णय भी लिया कि मोमिन तथा मुजाहिदीन औरतों को दास होने तक रोककर  की इस्लाम शांति, समृद्धि तथा लैंगिक समानता का धर्म बना रहे. एक प्रतिनिधि ने कहा की औरतों  सम्बन्धी अंतर्राष्ट्रीय मानक इस्लाम या पाकिस्तान के संविधान जिसमें अल्लाह को सर्वोच्चता दे गयी है के विरोधी हों तो उन्हें नहीं माना जाना चाहिए। कौंसिल ने सरकार को सलाह दी की औरतों से श्वास लेने का अधिकार छीनकर उसके पति या पालक को दिया जाना चाहिए। औरत को किसी भी हालत में श्वास लेने या न लेने का निर्णय करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।

Islamabad - Sharia Correspondent: The Council of Islamic Ideology (CII) concluded their 192nd meeting on Thursday with the ruling that women are un-Islamic and that their mere existence contradicted Sharia and the will of Allah. As the meeting concluded CII Chairman Maulana Muhammad Khan Shirani noted that women by existing defied the laws of nature, and to protect Islam and the Sharia women should be forced to stop existing as soon as possible. The announcement comes a couple of days after CII’s 191st meeting where they dubbed laws related to minimum marriage age to be un-Islamic.

After declaring women to be un-Islamic, Shirani explained that there were actually two kinds of women – haraam and makrooh. “We can divide all women in the world into two distinct categories: those who are haraam and those who are makrooh. Now the difference between haraam and makrooh is that the former is categorically forbidden while the latter is really really disliked,” Shirani said.

He further went on to explain how the women around the world can ensure that they get promoted to being makrooh, from just being downright haraam. “Any woman that exercises her will is haraam, absolutely haraam, and is conspiring against Islam and the Ummah, whereas those women who are totally subservient can reach the status of being makrooh. Such is the generosity of our ideology and such is the endeavour of Muslim men like us who are the true torchbearers of gender equality,” the CII chairman added.

Officials told Khabaristan Today that the council members deliberated over various historic references related to women and concluded that each woman is a source of fitna and a perpetual enemy of Islam. They also decided that by restricting them to their subordinate, bordering on slave status, the momineen and the mujahideen can ensure that Islam continues to be the religion of peace, prosperity and gender equality.

Responding to a question one of the officials said that international standards of gender equality should not be used if they contradict Islam or the constitution of Pakistan that had incorporated Islam and had given sovereignty to Allah. “We don’t believe in western ideals, and nothing that contradicts Islam should ever be paid heed. In any case by giving women the higher status of being makrooh, it’s us Muslims who have paved the way for true, Sharia compliant feminism,” the official said.

The CII meeting also advised the government that to protect Islam women’s right to breathe should also be taken away from them. “Whether a woman is allowed to breathe or not be left up to her husband or male guardian, and no woman under any circumstance whatsoever should be allowed to decide whether she can breathe or not,” Shirani said.

chhand salila: shobhan / sinhika chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

 शोभन / सिंहिका  छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति चौदह-दस, पदांत लघु-गुरु-लघु (जगण) 


लक्षण छंद:
  जनमत का जयघोष सुनें, नेता हो चुप आज
  चौदह विद्या दसों कला, सजे सिर पर ताज
 
उदाहरण: 
१. गहन तिमिर पश्चात हुआ, नील नभ रतनार
  नववधु ऊषा लाल हुई, सूर्य पर दिल हार
  छाया सौतन द्वेष करे, हृदय में रख डाह
  लख सोलह सिंगार हुई, राख के सम स्याह 


२. पराजित होकर हुए, नेता विकल मौन
    जनशक्ति की अनुभूति कर, हाय! बेबस मौन  
    आज सच को भूलना मत, 'सलिल' मत कर माफ़

    दुबारा अवसर न देना, रहे निज मन साफ़ 

३. हिन्द सा जग में न कोई, अन्य पावन देश 
   समर्पित हों देश के प्रति, खास- आम विशेष
   परिश्रम निश-दिन करें हम, रहे कसर न लेश
   नित नयी मंज़िल छुएँ मिल, लक्ष्य वर अशेष                  
                              *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

रविवार, 18 मई 2014

chhand salila: rasaal / sumitra chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

रसाल / सुमित्र छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति दस-चौदह, पदारंभ-पदांत लघु-गुरु-लघु.  


लक्षण छंद:
   रसाल चौदह--दस/ यति, रख जगण पद आद्यंत
  बने सुमि/त्र ही स/दा, 'सलिल' बने कवि सुसंत 

उदाहरण: 
१. सुदेश बने देश / ख़ुशी आम को हो अशेष 
   सभी समान हों न / चंद आदमी हों विशेष
   जिन्हें चुना 'सलिल' व/ही देश बनायें महान
   निहाल हो सके स/मय, देश का सुयश बखान  

२. बबूल का शूल न/हीं, मनुज हो सके गुलाब 
    गुनाह छिप सके न/हीं, पुलिस करे बेनकाब
    सियासत न मलिन र/हे, मतदाता दें जवाब

    भला-बुरा कौन-क/हाँ, जीत-हार हो हिसाब  

  ३. सुछंद लय प्रवाह / हो, कथ्य अलंकार भाव
    नये प्रतीक-बिम्ब / से, श्रोता में जगे चाव
    बहे ,रसधार अमि/त, कल्पना मौलिक प्रगाढ़ 
    'सलिल' शब्द ललित र/हें, कालजयी हो प्रभाव                   
                              *********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chitr-chitr kavita -sanjiv

चित्र-चित्र कविता:
संजीव
 *

फ़ोटो: Thanks for the add me. 

मेरे मन में कौन बताये कितना दिव्य प्रकाश है?
नयन मूँदकर जब-जब देखा, ज्योति भरा आकाश है.
चित्र गुप्त साकार दिखे शत, कण-कण ज्योतित दीप दिखा-
गत-आगत के गहन तिमिरमें, सत-शिव-सुंदर आज दिपा।
*


हार गया तो क्या गम? मन को शांत रखूँ
जीत चख चुका, अब थोड़ी सी हार चखूँ
फूल-शूल जो जब पाऊँ, स्वीकार सकूँ
प्यास बुझाकर भावी 'सलिल' निहार सकूँ
*


भटका दिन भर थक गया, अब न भा रही भीड़
साँझ कहे अब लौट चल, राह हेरता नीड़
*


समय की बहती नदी पर, रक्त के हस्ताक्षर 
किये जिसने कह रहा है, हाय खुद को साक्षर 
ढाई आखर पढ़ न पाया, स्याह कर दी प्रकृति ही-
नभ धरा तरु नेह से, रहते न कहना निरक्षर
*

(निलं मिश्रा जी)
खों रहे क्या कुछ भविष्य में, जो चाहेंगे पा जायेंगे
नेह नर्मदा नयन तुम्हारे, जीवन -जय गायेंगे
*  



(शानू)
दीखता है साफ़-साफ़, समय नहीं करे माफ़
जो जैसा स्वीकारूँ, धूप-छाँव हाफ़-हाफ़
गिर-उठ-चल मुस्काऊँ, कुछ नवीन रच जाऊँ-
समय हँसे देख-देख, अधरों पर मधुर लाफ.
*

(रघुविंदर यादव)
लाख आवरण ओढ़ रहे हो, मैं नज़रों से देख पा रहा
क्या-क्या मन में भाव छिपाये?, कितना तुमको कौन भा रहा?
पतझर काँटे धूल साथ ले, सावन-फागुन की अगवानी-
करता रहा मौन रहकर नित, गीत बाँटकर प्रीत पा रहा.
*


(सिया कुमार)
मौन भले दिखता पर मौन नहीं होता मन.
तन सीमित मन असीम, नित सपने बोता मन.
बेमन स्वीकार या नकार नहीं भाता पर-
सच है खुद अपना ही सदा नहीं होता मन.
*
वोट चोट करता 'सलिल', देख-देखकर खोट
जो कल थे इतरा रहे, आज रहे हैं लोट
जिस कर ने पायी ध्वजा, सम्हल बढ़ाये पैर
नहीं किसी का सगा हो, समय न करता बैर
*

*इंदु सिंह(
तेरे नयनों की रामायण, बाँच रही मैं रहकर मौन
मेरे नयनों की गीता को, पढ़ पायेगा बोलो कौन?
नियति न खुलकर सम्मुख आती, नहीं सदा अज्ञात रहे-
हो सामर्थ्य नयन में झाँके बिना नयन कुछ बात कहे.
*

शनिवार, 17 मई 2014

doha salila: hindi jagwani bane -sanjiv

​​
दोहा सलिला
संजीव
*
हिंदी जगवाणी बने, वसुधा बने कुटुंब
सीख-सीखते हम रहें, सदय रहेंगी अम्ब
पर भाषा सीखें मगर, निज भाषा के बाद
देख पड़ोसन भूलिए, गृहणी- घर बर्बाद
हिंदी सीखें विदेशी, आ करने व्यवसाय
सीख विदेशी जाएँ हम, उत्तम यही उपाय

तन से हम आज़ाद हैं, मन से मगर गुलाम
अंगरेजी के मोह में, फँसे विवश बेदाम
हिंदी में शिक्षा मिले, संस्कार के साथ
शीश सदा' ऊंचा रहे, 'सलिल' जुड़े हों हाथ
अंगरेजी शिक्षा गढ़े, उन्नति के सोपान
भ्रम टूटे जब हम करें, हिंदी पर अभिमान

शुक्रवार, 16 मई 2014

lekh: devaraha baba viragi sant -sanjiv


देवरहा बाबा पुण्य तिथि १५ जून पर पुण्य स्मरण:
 
देवरहा बाबा : विरागी संत 
 
-संजीव वर्मा  'सलिल'
*
भारत भूमि चिरकाल  संतों की लीला और साधना भूमि है. वर्तमान में जिन संतों  की सिद्धियों लोकप्रियता और सरलता बहुचर्चित है उनमें देवरहा बाबा अनन्य हैं. अपनी सिद्धियों, उपलब्धियों, उम्र आदि के संबंध में देवरहा बाबा ने कभी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ हमेशा उनमें चमत्कार खोजती रही किन्तु वे स्वयं प्रकृति में परमतत्व को देखते रहे. उनकी सहज, सरल उपस्थिति में वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे।
 
File:Devaha Baba.jpg 
सतयुग से कलियुग तक:
 
देवरहा बाबा के जन्म के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है. बाबा कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रामाणिक रिकार्ड नहीं है तथापि लोगों का विश्वास है कि वे ३०० से ५०० वर्षों से अधिक जिए। न्यूयार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब द्वारा जुटाये गये आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्ष तक जिए हैं। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। उनके आश्रम में देश-विदेश के ख्यातिनाम सिद्ध, संत, जननेता और सामान्यजन समभाव से आते और स्नेहाशीष पाते थे. बाबा को कभी किसी  खाते-पीते देखा न वस्त्र धारण करते या शौचादि क्रिया करते। बाबा सांसारिकता से सर्वथा दूर थे. बाबा के अनन्य भक्त भोपाल निवासी इंजी. सतीशचंद्र वर्मा के अनुसार बाबा का अवतरण सतयुग में हुआ था बाबाका जीवनलीला काल सतयुग से कलियुग है.
 
बाबा की ख्याति सदियों पूर्व से सकल विश्व में रहीं है. सन १९११ में भारत की यात्रा पर आने से पहले ब्रिटिश नरेश जार्ज पंचम ने अपने भाई प्रिंस फिलिप से पूछा कि क्या भारत में वास्तव में महान वास है? भाई ने बताया कि भारत में वाकई महान सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में देवरहा बाबा से जरूर मिलना। जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लावलश्‍कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियरा इलाके में मइल गाँव तक उनके आश्रम तक गया। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्‍वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को ब्रिटिश सरकार के पक्ष में करने के लिए हुई थी। जार्ज पंचम से हुई बातचीत के बारे में बाबा ने अपने कुछ शिष्‍यों को बताया भी था.
 
भविष्यदर्शन: 
 
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने माता-पिता के साथ बाबा के दर्शन अपने बचपन में लगभग ३ वर्ष की आयु में किये थे ।  उन्हें देखते ही बाबा देखते ही बोल पडे- 'यह बच्‍चा तो राजा बनेगा।' बाद में राष्‍ट्रपति बनने के बाद डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन १९५४ के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। बाबा के भक्तों में जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। बाबा के भक्‍तों में लालबहादुर शास्‍त्री, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटलबिहारी बाजपेई जैसे व्यक्तित्व रहे हैं। पुरूषोत्‍तम दास टंडन को तो  बाबा ने ही 'राजर्षि' की उपाधि दी थी।

दियरा इलाके में रहने के कारण बाबाका नाम देवरहा बाबा पडा । नर्मदा के उद्गमस्थल अमरकंटक में आँवले के पेड पर बने मचान पर तप करने पर उनका नाम अमलहवा बाबा भी हुआ। उनका पूरा जीवन मचान पर  ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका आश्रम था, नीचे से लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के माठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्‍तगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्‍तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह, हर दिन जुटती थी। 
  
वृक्ष की रक्षा: 
 
जून १९८७ में वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा लगा था। तभी प्रधानमंत्री राजीव गांधी से बाबा के दर्शन हेतु आने की सूचना प्राप्त हुई। अधिकारियों में अफरातफरी मच गयी। प्रधानमंत्री के आगमन -भ्रमण क्षेत्र का चिन्हांकन किया गया। उच्चाधिकारियों ने हैलीपैड बनाने के लिए एक बबूल पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिये। यह सुनते ही बाबा ने एक उच्च पुलिस अफसर को बुलाकर पूछा कि पेड़ क्यों कटना है? 'प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए वृक्ष काटना आवश्यक है' सुनकर बाबा ने कहा; ' तुम पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! पेड़ पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूँगा? यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अधिकारी ने विवशता बतायी कि आदेश दिल्ली से आये उच्च्चाधिकारी का है, इसलिए वृक्ष काटा ही जाएगा। पूरा पेड़ नहीं एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा: यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन-रात मुझसे बतियाता है. यह पेड़ नहीं कट सकता।' इस घटनाक्रम से अधिकारीयों की दुविधा बढ़ी तो बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा: 'घबड़ा मत, मैं तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम कैंसिल करा देता हूँ। आश्चर्य कि दो घंटे बाद  कार्यालय से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी बाबा के दर्शन हेतु पहुँचे किन्तु वह पेड़ नहीं कटा। 
 
आज हम सब निरंतर वृक्षों और वनस्पतियों का विनाश कर रहे हैं, यह प्रसंग पेड़ों के प्रति बाबा  संवेदनशीलता बताता है तथा प्रेरणा देता है कि हम सब प्रकृति  पर्यावरण के साथ आत्मभाव विकसित कर उनकी रक्षा करें।
 
पक्षियों से बातचीत:
 
देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते, लौटते तो लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। उन्होंने पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊँचे मचान पर देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान करते। वे आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। उनका स्वभाव बच्चों की तरह भोला था। वे कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बाँटकर सबको आशीर्वाद देते। बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी, उनकी नजर गहरी और आवाज़ भारी थी। 
 
मितभाषी बाबा:
 
बाबा बहुत कम बोलते थे किन्तु मार्गदर्शन माँगे जाने पर अपनी बात बेधड़क कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी प्रभावित किया। बाबा के अनुसार भारतीय जब तक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा देते, समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिये है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में खूब चर्चा होती थी। प्रत्‍यक्षदर्शी बताते हैं कि आधा-आधा घंटा तक वे पानी में रहते थे। पूछने पर उन्‍होंने शिष्‍यों से कहा- मैं जल से ही उत्‍पन्‍न हूँ। उनके भक्‍त उन्‍हें दया का महासमुंद बताते हैं। अपनी यह सम्‍पत्ति बाबा ने मुक्‍त हस्‍त से लुटायी, जब जो आया, बाबा से भरपूर आशीर्वाद लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्‍यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्‍या है? दिव्‍यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कडक आवाज, दिल खोल कर हँसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्‍त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्‍यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्‍प्‍यूटर की तरह। हाँ, बलिष्‍ठ कदकाठी भी थी।
  
सुपात्र को विद्या दान:
 


बाबा के पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएँ सिखाते थे। योग विद्या पर उन्हेंपूर्ण अधिकार था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। सिद्ध सम्मेलनों में संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से वे सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना ज्ञान किससे, कहाँ, कब - कैसे पाया? ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों में बाबा सिद्ध थे । धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे संवाद कर मार्गदर्शन पाते थे। बाबाने जीवन में लंबी-लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था। 
 
http://anandway.com/media/Sri-Devraha-Baba-Samadhi-Vrindavan-Photo_13AEB/DSC01477_3.jpgलीला संवरण:
 
आजीवन स्वस्थ्य तथा मजबूत रहे बाबा देह त्‍यागने के कुछ पूर्व कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। बाबा नित्य ही बिना नागा भक्तों को मचान  दर्शन देते थे किन्तु ११ जून १९८० से अचानक बाबाने दर्शन देना बंद कर दिया। भक्तों को अनहोनी की आशंका हुई. मौसम अशांत होने लगा. बाबा मचान पर त्रिबंध सिद्धासन में बैठे थे. चिकित्सकों ने शरीर का तापमान अत्यधिक पाया, तापमापी (थर्मामीटर) की अंतिम सीमा पर पारा सभी को आशंकित कर रहा था. मंगलवार १९ जून १९९० योगिनी एकादशी की शाम आंधी-तूफ़ान, मेघगर्जन और भारी जलवृष्टि बीच बाबा ने इहलीला संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गये। यमुना की लहरें तट पर हाहाकार कर बाबा के मचान तक पहुँचाने को मचल रही थीं. शाम ४ बजे स्पंदन रहित बाबा की देह बर्फ की सिल्लियों पर रखी गयी. अगणित भक्त शोकाकुल थे. देश-विदेश  विद्युतगति से फ़ैल .रहा था. अकस्मात् बाबा के  शिष्य देवदास ने बाबाके शीश पर स्पंदन अनुभव किया, ब्रम्हरंध्र खुल गया जिसे पुष्पों से भरा गया किन्तु वह फिर रिक्त हो गया. दो दिन तक बाबा के शरीर को  सिद्धासन त्रिबंध स्थिति में किसी चमत्कार की आशा में रखा गया. यमुना किनारे भक्त दर्शन हेतु उमड़ते रहे, अश्रु के अर्ध्य समर्पित करते रहे । बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर संचार-संपर्क के अधुनातन साधन न होने पर भी देश-देशांतर तक फैली, विश्व के कोने-कोने से हजारों भक्त उन्हें विदा देने उमड़ पड़े। कुछ विज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जाँचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह संभव नहीं हो सका. आखिरकार, दो दिन बाद बाबा की देह को उसी सिद्धासन-त्रिबंध की स्थिति में यमुना में प्रवाहित कर दिया गया
 
पूर्व जन्म के भक्त- साधक:
 
बाबा का मार्गदर्शन भक्तों को आज भी मिलता है. भक्त बाबा की साक्षात उपस्थिति का अनुभव तथा वार्तालाप भी करते हैं. शाहपुरा भोपाल निवासी श्री सतीश चन्द्र वर्मा (सेवा निवृत्त अधीक्षण यंत्री सिंचाई विभाग) बाबा के अनन्य ही नहीं पिछले जन्म के भी भक्त हैं. वे आज भी  ध्यान में बाबा से नित्य साक्षात करते हैं. ध्यान में बाबा से प्राप्त आदेशानुसार उन्होंने अपनी भोपाल-होशंगाबाद बहुमूल्य लगभग २.९ एकड़ भूमि (जो उनके पूर्वजन्म में उनकी तथा बाबा की तपस्थली थी) बाबा  के आश्रम व मंदिर हेतु गठित न्यास का के नाम कर दी है.यहाँ  साधनहीन वर्ग हेतु शिक्षा संस्थान व  हिंदी विद्यापीठ स्थापित किये जाने हैं.

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

सन्देश; हिंदी पर गर्व करें

सन्देश; हिंदी पर गर्व करें, न बोल सकें तो शर्म
*
हिंदी आता माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल
*



chhand salila: kavya chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

काव्य छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति ग्यारह-तेरह, मात्रा बाँट ६+४+४+४+६, हर चरण में ग्यारहवीं मात्रा लघु


लक्षण छंद:
   काव्य छंद / चौबी/, कला / ग्यारह/-तेर हो
   रखें कला / लघु रू/द्र, षट क/ली आ/दि-अं हो 
   मध्य चतुष्/कल ती/, द्विमा/ता क/र्मदे वत 
   अवतारी / की सुं/,र छवि / लख शं/का क मत  
(संकेत: रूद्र = ग्यारह, द्विमाता कर्मदेव = नंदिनी-इरावती तथा चित्रगुप्त)  

उदाहरण: 
१. चमक-दमक/कर दिल / हला/ती बिज/ली गिकर
   दादुर ना/चे उछ/-कूद/कर, मट/क-मटकर
   सनन-सनन / सन पव/ खेल/ता मच/ल-मचकर
   ढाँक सूर्य / को मे/ अकड़/ता गर/ज-गरकर      

२. अमन-चैन / की है / लाश / दुनिया / में सको
    फिर भी झग/ड़े-झं/ट घे/रे हैं / जन-ज को
    लोभ--मोह / माया-/मता / बेढब / चक्क है

    हर युग में /परमा/र्थ-स्वार्थ / की ही /टक्क है 

   ३. मस्जिद-मं/दिर ध/र्म-कर्म / का म/र्म न सझे 
    रीति-रिवा/ज़ों में / हते / हैं हर/दम उझे
    सेवा भू/ले पथ / नको / मेवा / का रुता
    लालच ने / मोहा,/ तिल भर / भी त्या/ग न दिता                    
                              *********

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सुखदा, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

गुरुवार, 15 मई 2014

chhand salila: vastuvadnak chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

वस्तुवदनक छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, पदांत चौकल-द्विकल

लक्षण छंद:
  
वस्तुवदनक कला चौबिस चुनकर रचते कवि
   पदांत चौकल-द्विकल हो तो शांत हो मन-छवि      
उदाहरण:

१. 
प्राची पर लाली झलकी, कोयल कूकी / पनघट / पर 
    रविदर्शन कर उड़े परिंदे, चहक-चहक/कर नभ / पर
    कलकल-कलकल उतर नर्मदा, शिव-मस्तक / से भू/पर 
    पाप-शाप से मुक्त कर रही, हर्षित ऋषि / मुनि सुर / नर      
 
२. मोदक लाईं मैया, पानी सुत / के मुख / में 
    आया- बोला: 'भूखा हूँ, मैया! सचमुच में'
    ''खाना खाया अभी, अभी भूखा कैसे?
    मुझे ज्ञात है पेटू, राज छिपा मोदक में''
  
३. 'तुम रोओगे कंधे पर रखकर सिर?  
    सोचो सुत धृतराष्ट्र!, गिरेंगे सुत-सिर कटकर''
    बात पितामह की न सुनी, खोया हर अवसर
    फिर भी
दोष भाग्य को दे, अंधा रो-रोकर                    *********

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सुखदा, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)