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गुरुवार, 22 जनवरी 2015

एक लघु कथा 03


.... एक बार फिर
"खरगोश" और ’कछुए’ के बीच दौड़ का आयोजन हुआ
पिछली बार भी दौड़ का आयोजन हुआ था मगर ’गफ़लत’ के कारण ’खरगोश’ हार गया ।मगर ’खरगोश’ इस बार सतर्क था। यह बात ’कछुआ: जानता था
इस बार ....
दौड़ के पहले कछुए ने खरगोश से कहा -’मित्र ! तुम्हारी दौड़ के आगे मेरी क्या बिसात । निश्चय ही तुम जीतोगे और मैं हार जाऊँगा। तुम्हारी जीत के लिए अग्रिम बधाई। मेरी तरफ़ से उपहार स्वरूप कुछ ’बिस्कुट’ स्वीकार करो। खरगोश इस अभिवादन से खुश होकर बिस्कुट खा लिया।
दौड़ शुरू हुई....खरगोश को फिर नीद आ गई ...कछुआ फिर जीत गया
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पुलिस को आजतक न पता चल सका कि उस बिस्कुट में क्या था। जहरखुरानी तो नहीं थी ?
इस बार कछुआ एक ’ राजनीतिक पार्टी ’ का कर्मठ व सक्रिय कार्यकर्ता था
 इस नीति से आलाकमान बहुत खुश हुआ और कछुए को पार्टी के ’मार्ग दर्शन मंडल’ का सचिव बना दिया

-आनन्द.पाठक
09413395592

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

चापलूस हर जगह बाजी मार लेते हैं ....सच तो यही है आजकल खरगोश कछुए जैसी ही हो गयी राजनीति..
बहुत खूब!

sanjiv ने कहा…

आनंद जी!
सामयिक सार्थक सशक्त लघुकथा. बधाई.