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शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

muktika: -sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
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(चित्र आभार : राज भाटिया)

अपने क़द से बड़ा हमारा साया है 
छिपा बीज में वृक्ष समझ अब आया है 

खड़ा जमीं पर नन्हे पैर जमाये मैं 
मत रुक, चलता रह रवि ने समझाया है 

साया-साथी साथ उजाले में रहते 
आँख मुँदे पर किसने साथ निभाया है?

'मैं' को 'मैं' से जुदा कर सका कब कोई
सब में रब को देखा गले लगाया है?

है अजीब संजीव मनुज जड़ पत्थर सा 
अश्रु बहाता लेकिन पोंछ न पाया है 

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