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शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

navgeet: -sanjiv

नवगीत:
संजीव
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वह खासों में खास है
रूपया जिसके पास है
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सब दुनिया में कर अँधियारा
वह खरीद लेता उजियारा
मेरी-तेरी खाट खड़ी हो
पर उसकी होती पौ बारा
असहनीय संत्रास है
वह मालिक जग दास है
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था तो वह  सच का हत्यारा
लेकिन गया नहीं दुतकारा
न्याय वही, जो राजा करता
सौ ले दस देकर उपकारा
सीता का वनवास है
लव-कुश का उपहास है
.
अँगना गली मकां चौबारा
हर सूं उसने पैर पसारा
कोई फर्क न पड़ता उसको
हाय-हाय या जय-जयकारा
उद्धव का सन्यास है
सूर्यग्रहण खग्रास है

3 टिप्‍पणियां:

Dhwani ने कहा…

उत्तम रचना…… बधाई!

achal verma achalkumar44@yahoo.com ने कहा…


achal verma achalkumar44@yahoo.com

आचार्य श्री ,
कितने दिन धन देगा साथ
रहे न माथ पर प्रभु का हाथ
सर धुन कर वो पछतायेंगे
जो कुपात्र धन ही चाहेंगे ॥
लक्ष्मी पैर दबाये उन के
भक्ति शान्ति उपकरण हैं जिनके॥

sanjiv ने कहा…

अचल न होती कभी चंचला
फिर भी पीछे जगत क्यों चला?
शांति-क्रांति भी रूपया चाहे
बिन लछमी कब हुआ बद-भला
इसके लिए प्रयास है
भक्ति-शक्ति गल-फाँस है
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