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रविवार, 4 जनवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
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गोल क्यों?
चक्का समय का गोल क्यों?
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कहो होती
हमेशा ही
ढोल में कुछ पोल क्यों?
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कसो जितनी
मिले उतनी
प्रशासन में झोल क्यों?
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रहे कड़के
कहे कड़वे
मुफलिसों ने बोल क्यों?
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कह रहे कुछ
कर रहे कुछ
ओढ़ नेता खोल क्यों?
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मान शर्बत
पी गये सत
हाय पाकी घोल क्यों?
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