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बुधवार, 28 जनवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
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नज़र फेरकर जा रहे
हो कहाँ तुम?
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यकायक ह्रदय की हुई मौन सरगम
गिरा दिल कहीं कह रही हो गिरा नम
सुनाई न देती पायल की छमछम
मुझे पर सुनो तुम धड़कन है गुमसुम
पाओगे जाओगे जब
भी जहाँ तुम
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लटें श्याम कहतीं कहानी कहे बिन
रहना है संग में मुझे संग रहे बिन
उठतीं न पलकें, धडकनें रहीं गिन
युगों से हुए हैं हमें क्यों ये पल-छिन?
दिखते नहीं हो, मगर
हो  यहाँ तुम
... 

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