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सोमवार, 5 जनवरी 2015

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नवगीत:
संजीव
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आओ भी सूरज!
छट गये हैं फूट के बादल
पतंगें एकता की मिल उड़ाओ
गाओ भी सूरज!
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करधन दिप-दिप दमक रही है
पायल छन-छन छनक रही है
नच रहे हैं झूमकर मादल
बुराई हर अलावों में जलाओ
आओ भी सूरज!
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खिचड़ी तिल-गुड़वाले लडुआ 
पिज्जा तजकर खाओ बबुआ
छोड़ बोतल उठा लो छागल 
पड़ोसी को खुशी में साथ पाओ  
आओ भी सूरज!
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