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सोमवार, 18 मई 2015

doha salila: aankh -sanjiv

दोहा सलिला:
दोहे के रंग आँख के संग
संजीव
*
आँखों का काजल चुरा, आँखें कहें: 'जनाब!
दिल के बदले दिल लिया,पूरा हुआ हिसाब'
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आँख मार आँखें करें, दोल पर सबल प्रहार 
आँख न मिल झुक बच गयी, चेहरा लाल अनार 
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आँख मिलकर आँख ने, किया प्रेम संवाद 
आँख दिखाकर आँख ने, वर्ज किया परिवाद 
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आँखों में ऑंखें गड़ीं, मन में जगी उमंग 
आँखें इठला कर कहें, 'करिए मुझे न तंग'
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दो-दो आँखें चार लख, हुए गुलाबी गाल 
पलक लपककर गिर बनी, अंतर्मन की ढाल 
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आँख मुँदी तो मच गया, पल में हाहाकार 
आँख खुली होने लगा, जीवन का सत्कार 
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कहे अनकहा बिन कहे, आँख नहीं लाचार 
आँख न नफरत चाहती, आँख लुटाती प्यार 
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सरहद पर आँखें गड़ा, बैठे वीर जवान 
अरि की आँखों में चुभें, पल-पल सीना तान 
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आँख पुतलिया है सुता, सुत है पलक समान 
क्यों आँखों को खटकता, दोनों का सम मान 
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आँख फोड़कर भी नहीं, कर पाया लाचार 
मन की आँखों ने किया, पल में तीक्ष्ण प्रहार 
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अपनों-सपनों का हुईं, आँखें जब आवास
कौन किराया माँगता, किससे कब सायास 
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अधर सुनें आँखें कहें, कान देखते दृश्य 
दसों दिशा में है बसा, लेकिन प्रेम अदृश्य 
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आँख बोलती आँख से, 'री! मत आँख नटेर' 
आँख सिखाती है सबक, 'देर बने अंधेर' 
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ताक-झाँककर आँक ली, आँखों ने तस्वीर
आँख फेर ली आँख ने, फूट गई तकदीर 
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आँख मिचौली खेलती, मूँद आँख को आँख 
आँख मूँद मत देवता, कहे सुहागन आँख 
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