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शनिवार, 2 मई 2015

ghanakshari chhand: sanjiv

घनाक्षरी सलिला: २
संजीव, छंद
घनाक्षरी से परिचय की पूर्व कड़ी में घनाक्षरी के लक्षणों तथा प्रकारों की चर्चा के साथ कुछ घनाक्षरियाँ भी संलग्न की गयी हैं। उन्हें पढ़कर उनके तथा निम्न भी रचना में रूचि हो  का प्रकार तथा कमियाँ बतायें, हो सके तो सुधार  सुझायें। जिन्हें घनाक्षरी  रचना में रूचि हो लिखकर यहाँ प्रस्तुत करिये. 

चाहते रहे जो हम / अन्य सब करें वही / हँस तजें जो भी चाह / उनके दिलों में रही 
मोह वासना है यह / परार्थ साधना नहीं / नेत्र हैं मगर मुँदे  / अग्नि इसलिए दही 
मुक्त हैं मगर बँधे / कंठ हैं मगर रुँधे / पग बढ़े मगर रुके / सर उठे मगर झुके 
जिद्द हमने ठान ली / जीत मन ने मान ली / हार छिपी देखकर / येन-केन जय गही 



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