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बुधवार, 20 मई 2015

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
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चल जब-तब परदेश को, अपना यही जुनून
गुड मोर्निंग करिए कहीं, कहीं आफ्टर नून
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गर्मी की तारीफ में पढ़ा कसीदा एक
'भर्ता खाने के लिये, भटा धूप में भून'
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दिल्ली में हो रहा है मर्यादा का खून 
खून मत जला देखकर पहुँच देहरादून 
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आम आदमी बन लड़े कल जो आम चुनाव
आज हुए  सबसे  बड़े वे  ही अफलातून 
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उपयोगी हो ठंड में,  स्वेटर बुन ले आज 
ले ले जितना मन कहे, सूर्य-किरण का ऊन 
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