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बुधवार, 24 जून 2015

muktika: sanjiv

मुक्तिका :
संजीव 
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बीज बना करते हैं जो वे फसल न होते 
अपने काटें बात अगर तो दखल न होते  
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जो विराट कहते खुद को वामन हो जाते 
शक्ल दिखानेवाले रिश्ते असल न होते   
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हर मुश्किल को हँस अपने सर पर लेते हैं 
मदद गैर की करनेवाले निबल न होते 
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जवां हौसला रखनेवाले हार न मानें 
शेर वही होते हैं नज़्मों-ग़ज़ल न होते
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रीत गढ़ा करते हैं जो वे नकल न होते 
शीश हथेली पर धरते जो नसल न होते
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