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बुधवार, 1 जुलाई 2015

jeebh par doha: sanjiv

दोहा सलिला:













दोहे का रंग जीभ के संग:

संजीव
*
जीभ चलाने में तनिक, लगे न ईंधन मीत
फिर भी न्यून चलाइये, सही यही है रीत
*
जीभ उठा दे मारते, तालू से सरकार
बिन सोचे क्या हो रहा, इससे बंटाधार
*
जीभ टंग रसना जिव्हा, या फिर कहें जुबान
बोला वापिस ले नहीं, जैसे तीर कमान
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अस्त्र-शस्त्र के वार शत, करते काम आघात
वार जीभ का जब लगे, समझो पाई मात
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जीभ चिढ़ा ठेंगा दिखा, करतीं अँखियाँ गोल
चित्त चुराकर भागतीं, छवि सचमुच अनमोल
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बोल मधुर कह जीत ले, जीभ सकल संसार
दिल से मिल दिलवर बने, पहुँच प्रीत-दरबार
*
चाट जीभ से वत्स को, गौ करती संपुष्ट
'सलिल' न तजती मलिन कह, रहे सदा संतुष्ट
*
विष-अमृत दोनों रखे, करे न लेकिन पान
जीभ संयमी संत सी, चुप हो तो गुणवान
*
बत्तिस दाँतों से घिरी, किन्तु न हो भयभीत
भरी आत्म विश्वास से, जीभ न तजती रीत
*
जी से जी तक पहुँचने, जीभ बनाती सेतु
जी जलने का भी कभी, बने जीभ ही हेतु
*



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