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बुधवार, 22 जुलाई 2015

muktika

मुक्तिका
संजीव
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मापनी: २१२२ १२१२ २२
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आँख से आँख जब मिलाते हैं
ख्वाहिशें आप क्यों छिपाते हैं?
आइना गैर को दिखाते हैं
और खुद से नज़र चुराते हैं
वक़्त का दे रहे दुहाई जो
फ़र्ज़ का क़र्ज़ कब चुकाते हैं?
रौशनी भीख माँगती उनसे
जो मशालें जला उठाते हैं
मैं 'सलिल' ज़िंदगी का जीवन हूँ
आप बेकार क्यों बहाते हैं?
***

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