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बुधवार, 25 नवंबर 2015

लघु कथा

लघु कथा-
दोषी कौन?
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कहते हैं अफवाहें पर लगाकर उगती हैं और उनसे फ़ैली गलतफहमी को दहशत बनते देर नहीं लगती। ऐसी ही कुछ दहशत मेरी पत्नी के मन में समा गयी। यह जानते हुए भी कि मैं उसकी बात से सहमत नहीं होऊँगा उसे मुझसे बात कहनी हो पड़ी क्योंकि उसके मत में वह बच्चों की सुरक्षा से जुडी थी। माँ बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं कर गुजरती, यहाँ तो बात सिर्फ मेरी नाराजी की थी।  

पिछले कुछ दिनों से सांप्रदायिक तनाव के चर्चे सुनकर उसने सलाह दी कि हमें स्थान परिवर्तन करने पर विचार करना चाहिए। हम दो भिन्न धर्मों के हैं, प्रेम विवाह करने के कारण हमारे रिश्तेदार संबंध तोड़ बैठे हैं। दोनों की नौकरी के कारण बच्चों को घर पर अकेला भी रहना होता है और पडोसी हमसे भिन्न धर्म के हैं। मैंने उसे विश्वास में लेकर मना लिया कि वह पड़ोसियों पर भरोसा रखे और बच्चों से यह बात न करे। 

दफ्तर में मैने अपने सहयोगी से अन्य बातों की तरह इस बात की चर्चा की। दुर्भाग्य से वहाँ एक पत्रकार बैठा था, उसने मोबाइल पर मेरी बात का ध्वन्यांकन कर लिया और भयादोहन करने का प्रयास किया। मेरे न डरने पर उसने नमक-मिर्च लगाकर अधिकारी और नेता से चुगली कर मेरा स्थानांतरण करा दिया। स्थानीय अखबार और खबर चैनल पर मेरे विरुद्ध प्रचार होने लगा। मेरे घर के बाहर लोग एकत्र होकर नारेबाजी करने लगे तो बहसों ने घबराकर मुझे और पत्नी को फोन किया। हमारे घर पहुँचने के पहले ही एक पडोसी पीछे की गली से अपने घर ले गये वे बच्चों को भी ले आये थे। 

बहार कुछ लोग मेरे पक्ष में कुछ विपक्ष में बहस और नारेबाजी करने लगे। मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि दोषी कौन है? 

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