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रविवार, 29 नवंबर 2015

sahokti alanakar

अलंकार सलिला: ३३ 
सहोक्ति अलंकार
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कई क्रिया-व्यापार में, धर्म जहाँ हो एक।
मिले सहोक्ति वहीं 'सलिल', समझें सहित विवेक।। 
एक धर्म, बहु क्रिया ही, है सहोक्ति- यह मान। 
ले सहवाची शब्द से, अलंकार पहचान।।

     सहोक्ति अपेक्षाकृत अल्प चर्चित अलंकार है। जब कार्य-कारण रहित सहवाची शब्दों द्वारा अनेक व्यापारों अथवा स्थानों में एक धर्म का वर्णन किया जाता है तो वहाँ सहोक्ति अलंकार होता है।       

     जब दो विजातीय बातों को एक साथ या उसके किसी पर्याय शब्द द्वारा एक ही क्रिया या धर्म से अन्वित किया जाए तो वहाँ सहोक्ति अलंकर होता है। इसके वाचक शब्द साथ अथवा पर्यायवाची संग, सहित, समेत, सह, संलग्न आदि होते हैं।

१. नाक पिनाकहिं संग सिधायी।                                                                     

     धनुष के साथ नाक (प्रतिष्ठा) भी चली गयी। यहाँ नाक तथा धनुष दो विजातीय वस्तुओं को एक ही शब्द 'साथ' से अन्वित कर उनका एक साथ जाना कहा गया है।


२. भृगुनाथ के गर्व के साथ अहो!, रघुनाथ ने संभु-सरासन तोरयो।

     यहाँ परशुरराम का गर्व और शिव का धनुष दो विजातीय वस्तुओं को एक ही क्रिया 'तोरयो' से अन्वित किया गया है।


३. दक्खिन को सूबा पाइ, दिल्ली के आमिर तजैं, उत्तर की आस, जीव-आस एक संग ही।।

     यहाँ उत्तर दिशा में लौट आने की आशा तथा जीवन के आशा इन दो विजातीय बैटन को एक ही शब्द 'तजना' से अन्वित किया गया है।


४. राजाओं का गर्व राम ने तोड़ दिया हर-धनु के साथ।

५. शिखा-सूत्र के साथ हाय! उन बोली पंजाबी छोड़ी।

६. देह और जीवन की आशा साथ-साथ होती है क्षीण।

७. तिमिर के संग शोक-समूह । प्रबल था पल-ही-पल हो रहा।

८. ब्रज धरा जान की निशि साथ ही। विकलता परिवर्धित हो चली।

९. संका मिथिलेस की, सिया के उर हूल सबै, तोरि डारे रामचंद्र, साथ हर-धनु के।

१०. गहि करतल मुनि पुलक सहित कौतुकहिं उठाय लियौ।
     नृप गन मुखन समेत नमित करि सजि सुख सबहिं दियौ।।
     आकर्ष्यो सियमन समेत, अति हर्ष्यो जनक हियौ।
     भंज्यो भृगुपति गरब सहित, तिहुँलोक बिसोक कियौ।।


११. छुटत मुठिन सँग ही छुटी, लोक-लाज कुल-चाल।
     लगे दुहन एक बेर ही, चल चित नैन गुलाल।।


१२. निज पलक मेरी विकलता साथ ही, अवनि से उर से, मृगेक्षिणी ने उठा।

१३. एक पल निज शस्य श्यामल दृष्टि से, स्निग्ध कर दी दृष्टि मेरी दीप से।।

१४. तेरा-मेरा साथ रहे, हाथ में साथ रहे।

१५. ईद-दिवाली / नीरस-बतरस / साथ न होती।

१६. एक साथ कैसे निभे, केर-बेर का संग? 
     भारत कहता शांति हो, पाक कहे हो जंग।।


     उक्त सभी उदाहरणों में अन्तर्निहित क्रिया से सम्बंधित कार्य या कारण के वर्णन बिना ही एक धर्म (साधारण धर्म) का वर्णन सहवाची शब्दों के माध्यम से किया गया है.
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