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मंगलवार, 1 मार्च 2016

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एक रचना- 
लौट घर आओ 
*
लौट घर आओ. 
मिल स्वजन से 
सुख सहित पुनि
लौट घर आओ.
*
सुता को लख
बिलासा उमगी बहुत होगी
रतनपुर में
आशिषें माँ से मिली होंगी
शंख-ध्वनि सँग
आरती, घंटी बजी होगी
विद्यानगर में ख़ुशी की
महफ़िल सजी होगी
लौट घर आओ.
*
हवाओं में फिजाओं में
बस उदासी है.
पायलों के नूपुरों की
गूँज खासी है
कंगनों की खनक सुनने
आस प्यासी है
नर्मदा में बैठ आतीं
सुन हुलासी है
लौट घर आओ.
*
गुनगुनाहट धूप में मिल
खूब निखरेगी
चहचहाहट पंछियों की
मंत्र पढ़ देगी
लैम्ब्रेटा महाकौशल
पहुँच सिहरेगी
तुहिन-मन्वन्तर मिले तो
श्वास हँस देगी
लौट घर आओ.
*
२९-२-२०१६

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