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मंगलवार, 28 जून 2016

navgeet

नवगीत 
खिला मोगरा ​

*
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब 
याद किसी की आई। 
महक उठा मन 
श्वास-श्वास में 
गूँज उठी शहनाई। 
 
*
हरी-भरी कोमल पंखुड़ियाँ 
आशा-डाल लचीली।
मादक चितवन कली-कली की
ज्यों घर आई नवेली। 
माँ के आँचल सी 
सुगंध
​ ने ​
दी ममता-परछाई।
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब 
याद किसी की आई।
*
ननदी तितली ताने मारे 
छेड़ें भँवरे देवर। 
भौजी के अधरों पर सोहें 
मुस्कानों के जेवर। 
ससुर गगन ने 
विहँस बहू की 
की है मुँह दिखलाई। 
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब  
याद किसी की आई। 
सजन पवन जब अंग लगा तो 
बिसरा मैका-अँगना। 
द्वैत मिटा, अद्वैत वर लिया 
खनके पायल-कँगना।  
घर-उपवन में 
स्वर्ग बसाकर 
कली न फूल समाई। 
खिला मोगरा 
जब-जब, मुझको 
याद किसी की आई।
***

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