कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

नवगीत

एक रचना 
कारे बदरा 
*
आ रे कारे बदरा
*
टेर रही धरती तुझे 
आकर प्यास बुझा 
रीते कूप-नदी भरने की 
आकर राह सुझा 
ओ रे कारे बदरा 
*
देर न कर अब तो बरस 
बजा-बजा तबला 
बिजली कहे न तू गरज 
नारी है सबला 
भा रे कारे बदरा 
*
लहर-लहर लहरा सके 
मछली के सँग झूम 
बीरबहूटी दूब में 
नाचे भू को चूम 
गा रे कारे बदरा 
*
लाँघ न सीमा बेरहम 
धरा न जाए डूब  
दुआ कर रहे जो वही 
मनुज न जाए ऊब 
जा रे कारे बदरा 
*
हरा-भरा हर पेड़ हो 
 नगमे सुना हवा 
'सलिल' बूंद नर्तन करे  
गम की बने दवा
छा रे कारे बदरा
*****

कोई टिप्पणी नहीं: