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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

samiksha

कृति चर्चा-

"अंजुरी भर धूप" नवगीत अरूप
चर्चाकार- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
[कृति परिचय- अँजुरी भर धूप, गीत-नवगीत संग्रह, सुरेश कुमार पंडा, वर्ष २०१६, ISBN ८१-८९२४४-१८-०४, आकार २०.५ से.मी.x१३.५ से.मी., आवरण बहुरंगी पेपरबैक, १०४, मूल्य १५०/-, वैभव प्रकाशन अमीनपारा चौक, पुरानी बस्ती, रायपुर गीतकार संपर्क ९४२५५१००२७]
*
                        नवगीत को साम्यवादियों की विसंगति और विडम्बना केन्द्रित विचारधारा जनीर मानकों की कैद से छुड़ा कर खुली हवा में श्वास लेने का अवसर देनेवाले गीतकारों में एक नाम भाई सुरेश कुमार पंडा का भी है. सुरेश जी का यह गीत-नवगीत संग्रह शिष्ट श्रृंगार रस से आप्लावित मोहक भाव मुद्राओं से पाठक को रिझाता है.  
'उग आई क्षितिज पर 
सेंदुरी उजास 
 ताल तले पियराय 
उर्मिल आकाश 
वृन्तों पर शतरंगी सुमनों की 
भीग गई
रसवन्ती कोर 
बाँध गई अँखियों को शर्मीली भोर 
*
फिर बिछलती साँझ ने 
भरमा दिया 
लेकर तुम्हारा नाम 
* अधरों के किस्लाई किनारों तक 
तैर गया 
रंग टेसुआ 
सपनीली घटी के 
शैशवी उतारों पर 
गुम हो गया 
उमंग अनछुआ 
आ आकर अन्तर से 
लौट गया 
शब्द इक अनाम 
लिखा है एक ख़त और 
अनब्याही ललक के नाम 

                        सनातन शाश्वत अनुभुतियों की सात्विकतापूर्ण अभिव्यक्ति सुरेश जी का वैशिष्ट्य है. वे नवगीतों को आंचलिकता और प्रांजलता के समन्वय से पठनीय बनाते हैं. देशजता और जमीन से जुड़ाव के नाम पर अप्रचलित शब्दों को ठूँसकर भाषा और पाठकों के साथ अत्याचार नहीं करते. 

                          अछूती भावाभिव्यक्तियाँ, टटके बिम्ब और मौलिक कहन सुरेश जी के गीतों को पाठक की अपनी अनुभूति से जोड़ पाते हैं- 
पीपल की फुनगी पर 
टंगी रहीं आँखें 
जाने कब 
अंधियारा पसर गया
एकाकी बगर गया 
रीते रहे पल-छिन
अनछुई उसांसें. 

                                 नवगीत की सरसता सहजता और ताजगी ही उसे गीतों से पृथक करती है. 'अँजुरी भर धूप' में यह तीनों तत्व सर्वत्र व्याप्त हैं. एक सामान्य दृश्य को अभिनव दृष्टि से शब्दित करने की क्ला में नवगीतकार माहिर है -
आँगन के कोने में 
अलसाया 
पसरा था 
करवट पर सिमटी थी 
अँजुरी भर धूप 
*
तुम्हारे एक आने से 
गुनगुनी 
धूप सा मन चटख पीला
फूल सरसों का 
तुम्हारे एक आने से 
सहज ही खुल गई आँखें 
उनींदी 
रतजगा 
करती उमंगों का. 

                                सुरेश जी विसंगतियों, पीडाओं और विडंबनाओं ओ नवगीत में पिरोते समय कलात्मकता को नहीं भूलते. सांकेतिकता उनकी अभिव्यक्ति का अभिन्न अंग है -
चाँदनी थी द्वार पर 
भीतर समायी 
अंध कारा 
पास बैठे थे अजाने 
दुर्मुखों का था सहारा. 

                               आज तेरी याद फिर गहरा गयी है, लिखा है एक खत, कौन है, स्वप्न से जागा नहीं हूँ, मन मेर चंचल हुआ है, अनछुई उसांसें, तुम आये थे, अपने मन का हो लें, तुम्हारे एक आने से,  मन का कोना, कब आओगे?, चाँदनी है द्वार पर, भूल चुके हैं, शहर में एकांत, स्वांग, सूरज अकेला है, फागुन आया आदि रचनाएँ मन को छूती हैं. सुरेश जी के इन नवगीतों की भाषा अपनी अभिव्यंजनात्मकता के सहारे पाठक के मन पैठने में सक्षम है. सटीक शब्द-चयन उनका वैशिष्ट्य है. यह संग्रह पाठकों को मन भाने के साथ अगले संग्रह के प्रति उत्सुकता भी जगाता है. 
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संपर्क- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', 204 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com
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