tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post8991748009766561440..comments2024-03-02T15:49:04.728+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : bak kavita: nagpanchami Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-89408237399568912452023-08-21T10:12:23.208+05:302023-08-21T10:12:23.208+05:30ये कविता मुझे भी याद है, हर साल नागपंचमी के दिन मै...ये कविता मुझे भी याद है, हर साल नागपंचमी के दिन मैं इसे ज़रूर याद कर लेता हूँ। इसे लिखने वाले कवि का मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ। Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-64087551881953853642021-08-13T23:03:34.196+05:302021-08-13T23:03:34.196+05:30सही कहा आप लोगों ने इसके रचयिता जबलपुर के सुप्रसिद...सही कहा आप लोगों ने इसके रचयिता जबलपुर के सुप्रसिद्ध रचनाकार नर्मदा प्रसाद खरे ही हैं।<br />बाल भारती कक्षा 4 के सम्भवतः अध्याय 18 में नागपंचमी शीर्षक से इसका प्रकाशन हुआ था। <br />Sanjay Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/03405452757504339413noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-37147075273830787872020-08-04T14:04:51.658+05:302020-08-04T14:04:51.658+05:30जी हां ,जहां तक मेरी जानकारी है रचनाकार स्व नर्मदा...जी हां ,जहां तक मेरी जानकारी है रचनाकार स्व नर्मदा प्रसाद खरे जी ही हैं ।अनिता वर्माhttps://www.blogger.com/profile/13250557489191390023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-85990133203045902652020-07-26T10:31:53.238+05:302020-07-26T10:31:53.238+05:30रचनाकार पर भ्रम है
नर्मदाप्रसाद खरे हैं संभवतःरचनाकार पर भ्रम है<br />नर्मदाप्रसाद खरे हैं संभवतःAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/10864585665631424052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-83409038015476918852014-10-07T12:20:43.948+05:302014-10-07T12:20:43.948+05:30आत्मीय!
आपकी गुणग्राहकता को नमन. इस कविता के रचयित...आत्मीय!<br />आपकी गुणग्राहकता को नमन. इस कविता के रचयिता सुधीर त्यागी हैं. उनकी कोई दूसरी रचना मेरे संज्ञान में नहीं है. उनका परिचय, चित्र व अन्य रचनाएँ कोई उपलब्ध करा सके तो उपकार होगा। यह रचना ६० के दशक में ४ थी की बाल भारती में थी जिसका संपादन स्व. भवानीप्रसाद तिवारी (गीतांजलि के काव्यानुवादक, सुकवि,महापौर) ने किया था. उसकी प्रति तिवारी जी की विदुषी पुत्री डॉ. आभा दुबे के रास सुरक्षित है, वहीं से अविकल पथ और रचनाकार का नाम प्राप्त हुआ. मैं आभा जी का आभारी हूँ. sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-12826996727421847272014-10-07T12:19:48.302+05:302014-10-07T12:19:48.302+05:30Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com [ekavita]
9:47 pm...Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com [ekavita] <br />9:47 pm (14 घंटे पहले)<br /><br />ekavita <br /> <br />आ. आचार्य 'सलिल' जी,<br />प्रणाम: <br />इस कविता का परिचय शायद आपने पहले भेजा था आज़ पूरी रचना को पढ़ा<br />और आनंद आया | आ . सुधीर पाठक जी की अब्भिव्यक्ति लोक- साहित्य <br />और साहित्यिक स्तर सारगर्भित रचना सभी को आकर्षित करती है | हवा- <br /> महल के रमई काका जी की तर्ज़ पर बहुत प्रभावशाली है | अतः <br />आपको और सुधीर जी का बहुत- बहुत शुभकामनाएं | <br />सादर- आरजीRam Gautam gautamrb03@yahoo.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-73493683361952239662014-10-07T12:19:21.271+05:302014-10-07T12:19:21.271+05:30संतोष जी धन्यवादसंतोष जी धन्यवादsanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-56243975782142163492014-10-07T12:18:37.152+05:302014-10-07T12:18:37.152+05:30ksantosh_45@yahoo.co.in
सलिल जी वास्तव मे कविता ...ksantosh_45@yahoo.co.in<br /> <br />सलिल जी वास्तव मे कविता जानदार,शानदार और<br />दमदार है. यह धरोहर ही है.<br />सन्तोष कुमार सिंह'ksantosh_45@yahoo.co.in'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-5256791439868871762014-10-07T12:18:02.876+05:302014-10-07T12:18:02.876+05:30अमिताभ जी मैं भी वर्षों से तलाश रहा था. रचनाकार है...अमिताभ जी मैं भी वर्षों से तलाश रहा था. रचनाकार हैं श्री सुधीर त्यागी. sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-61639291102292117302014-10-07T12:17:38.165+05:302014-10-07T12:17:38.165+05:30
आचार्य जी,
बहुत बहुत धन्यवाद!
बहुत दिनों से मै... <br />आचार्य जी, <br />बहुत बहुत धन्यवाद! <br />बहुत दिनों से मैं भी इस रचना को ढूंढ रहा था। मध्यप्रदेश की कक्षा 4 की हिंदी की पुस्तक संभवतः बालभारती में पढ़ा था इसे 1967-68 में। यदि उस समय का कोई संस्करण मिल जाय तो कवि का नाम पता चल सकता है। <br />स्मृति में दो ही पंक्तियाँ रह गयी थीं<br />दंगल हो रहा अखाड़े में <br />चन्दन चाचा के बाड़े में<br />आज आपने पूरी रचना भेज दी, एतदर्थ पुनः आभार<br />सादर<br />अमितAmitabh Tripathi amitabh.ald@gmail.comnoreply@blogger.com