कुल पेज दृश्य

शनिवार, 27 मार्च 2010

ख़बरदार कविता: नारी आरक्षण -संजीव 'सलिल'

ख़बरदार कविता:

संजीव 'सलिल'

नेताओं का शगल है, करना बहसें रोज.
बिन कारण परिणाम के, क्यों नाहक है खोज..

रोजी-रोटी स्वार्थ है, धंधा- बोलें झूठ.
धर्म एक- जितना बनें जनता को लें लूट..

नारी माता भगिनी है, नारी संगिनी दिव्य.
सुता सखी भाभी बहू, नारी सचमुच भव्य..

शारद उमा रमा त्रयी, ज्ञान शक्ति श्री-खान.
नर से दो मात्रा अधिक, नारी महिमावान..

तैंतीस की बकवास का, केवल एक जवाब.
शत-प्रतिशत के योग्य वह, किन्तु न करे हिसाब..

देगा किसको कौन क्यों?, लेगा किससे कौन?
संसद में वे भौंकते, जिन्हें उचित है मौन..

*********************************
divyanarmada.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: