मुक्तिका:
मन में दृढ़ विश्वास लिये.
संजीव 'सलिल'
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मन में दृढ़ विश्वास लिये.
फिरते हैं हम प्यास लिये..
ढाई आखर पढ़ लें तो
जीवन जियें हुलास लिये..
पिये अँधेरे और जले
दीपक सदृश उजास लिये..
कोई राह दिखाये क्यों?
बढ़ते कदम कयास लिये..
अधरों पर मुस्कान 'सलिल'
आयी मगर भड़ास लिये..
मंजिल की तू फ़िक्र न कर
कल रे 'सलिल' प्रयास लिये.
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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