मुक्तिका:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
*
खो गया खोजो कहाँ-कब आँख का पानी?
बो गया निर्माण की फसलें ये वरदानी..
काटकर जंगल, पहाड़ों को मिटाते लोग.
नासमझ है मनुज या है दनुज अभिमानी?
मिटी कल-कल, हुई किल-किल, घटा जब से नीर.
सुन न जन की पीर, करता तंत्र मनमानी..
लिये चुल्लू में तनिक जल, जल रहा जग आज.
'यही जल जीवन' नहीं यह बात अनजानी..
'सत्य-शिव-सुन्दर' न पानी बिन सकोगे साध.
जल-रहित यह सृष्टि होगी 'सलिल' शमशानी..
*******
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
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खो गया खोजो कहाँ-कब आँख का पानी?
बो गया निर्माण की फसलें ये वरदानी..
काटकर जंगल, पहाड़ों को मिटाते लोग.
नासमझ है मनुज या है दनुज अभिमानी?
मिटी कल-कल, हुई किल-किल, घटा जब से नीर.
सुन न जन की पीर, करता तंत्र मनमानी..
लिये चुल्लू में तनिक जल, जल रहा जग आज.
'यही जल जीवन' नहीं यह बात अनजानी..
'सत्य-शिव-सुन्दर' न पानी बिन सकोगे साध.
जल-रहित यह सृष्टि होगी 'सलिल' शमशानी..
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